Friday 10 February 2012

ek vichar

                           चलो आकाश को छू लें 
मन करता है कि पंछी बनकर मुक्त गगन में विचरण करूँ
और अपने हौंसलों को नई उडान दूँ,मगर प्रश्न उठता है कि 
क्या संकीर्ण चिंतन के माध्यम से ऐसा संभव है ,आज देश में 
जो दशा है,अपने स्वार्थों कि बोली बोलने में लोग अभ्यस्त 
होते ja रहे हैं,तब क्या नकारात्मक दृष्टि से कोई लक्ष्य प्राप्त 
करना सहज  है ,मेरा एक चिंतन दिशा है,मई यही चाहता हूँ-
'चलो आकाश को छू लें ,बहुत संभावनाएं हैं ।'
                          - डॉ. सुधाकर आशावादी   

Thursday 9 February 2012

rashtriy chintan

देश किधर जा रहा है, इससे किसी को कोई सरोकार नहीं है,राजनीति की स्थिति बहुत गंभीर हो गई है ,
सत्ता के लिए राजनेता किसी भी हद तक गुज़र सकते हैं,कोई भी नीचता का कार्य कर सकते है, देश में 
यदि कही अलगाव है,तो उसके सबसे बड़े दोषी राजनेता ही हैं,जो अपने स्वार्थ के लिए जनमानस को 
लड़ाने में पीछे नहीं हैं, राजनीति को व्यापार बना दिया गया है, समझ नहीं आता कि भरे पेट नेता अपनी 
भूख शांत करते हैं या गरीबों की ? दिखावा हर पेट को रोटी हर हाथ को रोजगार का करते हैं,किन्तु ये 
कितने सही हैं तथा गरीबों के कितने हमदर्द हैं,यह इनके आचरण से पता चलता है, जब ये अपने अनपढ़
और योग्य रिश्तेदारों के नाम से कम्पनियां बनाकर करोड़ों अरबों के वारे न्यारे करते हैं, सवाल यह है कि
इन बहरूपियों के चंगुल से राष्ट्र को कैसे बचाया जाय ?
                                                  - डॉ. सुधाकर आशावादी