चलो आकाश को छू लें
मन करता है कि पंछी बनकर मुक्त गगन में विचरण करूँ
और अपने हौंसलों को नई उडान दूँ,मगर प्रश्न उठता है कि
क्या संकीर्ण चिंतन के माध्यम से ऐसा संभव है ,आज देश में
जो दशा है,अपने स्वार्थों कि बोली बोलने में लोग अभ्यस्त
होते ja रहे हैं,तब क्या नकारात्मक दृष्टि से कोई लक्ष्य प्राप्त
करना सहज है ,मेरा एक चिंतन दिशा है,मई यही चाहता हूँ-
'चलो आकाश को छू लें ,बहुत संभावनाएं हैं ।'
- डॉ. सुधाकर आशावादी