Thursday 23 May 2013

सुप्रभात:
मैं नहीं कहता किसी से डर 
यदि डरना है तो अपने आप से डर । 
ज़वाबदेही है नहीं तेरी और किसी के लिए 
ज़वाब देना है हर पल तुझे अपने आप को ॥ 
- सुधाकर आशावादी 

Sunday 12 May 2013

कभी फेसबुक कभी भेषबुक
तन्हाई है ...कहाँ जाऊं ? 
छुट्टी है कि कटने का नाम नहीं ले रही । 
लोग परेशान हैं कि उनके पास समय नहीं 
मैं परेशान हूँ कि समय का सदुपयोग कैसे करूँ ?
सुबह से कागज काले कर रहा हूँ ......और क्या करूँ ?
- सुधाकर आशावादी 

Tuesday 7 May 2013

एक विचार :
कभी कभी कुछ नया करने के लिए मन करता है,मगर विचारणीय है कि संसार में नया क्या है, जो भी है,वह विद्यमान है, लगभग सौ बरस पहले जो कहानियां कालकूट ने लिखी वे आज भी प्रासंगिक हैं । किसी ने सच ही कहा है कि कथानक वही रहते हैं,मगर पात्र बदलते रहते हैं । जो विद्यमान है वही तो हम प्राप्त कर रहे हैं । ज्ञान के सागर में गोते लगाने का जो आनंद है,सम्भवत: वह आनंद भौतिक सुखों में भी नहीं है,क्योंकि ज्ञान के सागर में स्नान करके मानसिक द्वार संकीर्णता में सिमटकर नहीं रह सकते । ऐसा मेरा मत है । संकीर्णताएं वहीँ प्रवेश कर सकती हैं , जहाँ व्यक्ति अपनी समझ के द्वार बंद करके पूर्वाग्रह के द्वार खोल कर रखता है ।
- सुधाकर आशावादी