लोकतंत्र के नाम :
निसंदेह लोकसभा चुनावों की घोषणा के उपरांत विषम परिस्थितियाँ आम आदमी के सम्मुख हैं कि वह छद्म ईमानदारों के साथ खड़ा हो या 65 साल के मुकाबले 60 महीने मांगने वाले के साथ , मगर उस झूठी कसम वाले को कौन समझाए जो हम भी खेलेंगे , नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे की तर्ज पर अपने मतलब से जनता में रायशुमारी का ढोंग रचता फिरता है। स्वयं को राष्ट्रीय राजनीति में खपाने के लिए जिसने एक प्रान्त की जनता के साथ धोखा किया। बहरहाल लोकतंत्र की यह कमजोरी है कि कोई एक टाँग तो कोई डेढ़ टाँग से लोकतंत्र को बैसाखियों पर धकेलने की फिराक में है, जो लोकतंत्र का सबसे खतरनाक पहलू है।
- सुधाकर आशावादी
निसंदेह लोकसभा चुनावों की घोषणा के उपरांत विषम परिस्थितियाँ आम आदमी के सम्मुख हैं कि वह छद्म ईमानदारों के साथ खड़ा हो या 65 साल के मुकाबले 60 महीने मांगने वाले के साथ , मगर उस झूठी कसम वाले को कौन समझाए जो हम भी खेलेंगे , नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे की तर्ज पर अपने मतलब से जनता में रायशुमारी का ढोंग रचता फिरता है। स्वयं को राष्ट्रीय राजनीति में खपाने के लिए जिसने एक प्रान्त की जनता के साथ धोखा किया। बहरहाल लोकतंत्र की यह कमजोरी है कि कोई एक टाँग तो कोई डेढ़ टाँग से लोकतंत्र को बैसाखियों पर धकेलने की फिराक में है, जो लोकतंत्र का सबसे खतरनाक पहलू है।
- सुधाकर आशावादी