Friday 21 March 2014

लोकतंत्र के नाम :

निसंदेह लोकसभा चुनावों की घोषणा के उपरांत विषम परिस्थितियाँ आम आदमी के सम्मुख हैं कि वह छद्म ईमानदारों के साथ खड़ा हो या 65 साल के मुकाबले 60 महीने मांगने वाले के साथ , मगर उस झूठी कसम वाले को कौन समझाए जो हम भी खेलेंगे , नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे की तर्ज पर अपने मतलब से जनता  में रायशुमारी का ढोंग रचता फिरता है। स्वयं को राष्ट्रीय राजनीति में खपाने के लिए जिसने एक प्रान्त की जनता के साथ धोखा किया। बहरहाल लोकतंत्र की यह कमजोरी है कि कोई एक टाँग तो कोई डेढ़ टाँग से लोकतंत्र को बैसाखियों पर धकेलने की फिराक में है, जो लोकतंत्र का सबसे खतरनाक पहलू है।
- सुधाकर आशावादी

Monday 3 March 2014

लाल नीली बत्तियाँ
अब सियासी हो गयी हैं लाल नीली बत्तियाँ
सबको भरमाने लगी हैं लाल नीली बत्तियाँ।
आदमी का आदमी से बैर होना लाजिमी है 
बिल्लियों के बीच बन्दर लाल नीली बत्तियाँ।
रैली थैली तू-तू मैं-मैं सच कहाँ सुन पाओगे
अपनी अपनी कह रही हैं लाल नीली बत्तियाँ।
झुनझुने हाथों में देकर बच्चों को बहलाएंगी
अपने मकसद से लुभाती लाल नीली बत्तियाँ।
- सुधाकर आशावादी