Sunday 2 June 2013

समाज किधर जा रहा है, रिश्तों की परिभाषाएं कैसे बदलती जा रही हैं, पुरातन नैतिकता के मूल्य किस प्रकार अपने अर्थ खोते जा रहे हैं ? यह चिंतनीय एवं विचारणीय बिंदु है । भौतिक जगत में देह एवं देह-जनित सम्बन्ध सर्वोपरि होते जा रहे हैं, मर्यादाएं अपनी ही सीमाओं में सिमटकर संकुचित होती जा रही हैं । ऐसे में प्रश्न यही उत्पन्न होता है - भारत भूमि आखिर क्यों अपनेपन से बंजर होती जा रही है ?
- सुधाकर आशावादी