अंतर्राष्ट्रीय जगत में व्यक्ति की पहिचान समाज से चिन्हित है। समाज के बिना व्यक्ति के वैयक्तिक चरित्र एवं समाज के प्रति उसके योगदान की समीक्षा नहीं की जा सकती। प्रश्न उत्पन्न होता है कि समाज कैसा होना चाहिए और समाज कैसा है ? निसंदेह दोनों में भेद है। समाज अपना सामाजिक उत्तरदायित्व भूलकर केवल स्वार्थ की परिभाषाएं गढ़ने में जुटा है। सब अपने स्वार्थ की बोली बोलने में ही अपना भला समझ रहे हैं। प्रश्न यह है कि समाज के बिना जब सुविधायुक्त जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती , तब हम समाज में स्वार्थ का तानाबाना बुनकर समाज को वैमनस्य , अलगाववाद और हिंसा की आग में झोंकने पर क्यों आमादा हैं ?
- सुधाकर आशावादी
- सुधाकर आशावादी