Friday 28 February 2014

श्रद्धार्चन : :

बात श्रद्धा की अगर हो तो मैं तुम्हे स्वीकारता  हूँ
बिना देखे बिना समझे मैं ईश तुमको मानता हूँ
तुम अलौकिक दिव्य-शक्ति मेरा अंतस कह रहा है
तुम प्रलयंकर सृजन तुम ही,मात्र इतना जानता हूँ।
………… सुधाकर आशावादी

रे मन !

अधूरापन लिए यह ज़िन्दगी है सदा रोती
रिक्तता का थाम दामन हर कदम ढोती
जहाँ होता स्नेहबंधन वहाँ देह नहीं होती।
जहाँ देह होती है वहाँ मन की नहीं चलती।
- सुधाकर आशावादी

Thursday 27 February 2014

देश का सियासी वातावरण जैसे राजनैतिक शुचिता से नितांत विलग नज़र आता है।  जन मानस के लिए यह समझना कठिन है कि किस पर विश्वास करे , क्योंकि अब तक जिन जिन पर आम आदमी ने विश्वास किया है उसे बदले में विश्वासघात ही सहना पड़ा है।
- सुधाकर आशावादी