देश में राष्ट्रपति चुनाव के लिए दो दिग्गज कमर कसे हुए हैं,मगर जीत जिसकी होनी है वह पहले से ही निश्चित माना जा रहा है,विचारणीय बिंदु यह है कि क्या राष्ट्रपति जैसा संवैधानिक पद किसी भी राजनैतिक दल के निष्ठावान को दिया जाना चाहिए,वैसे अब इस सवाल का कोई औचित्य नहीं रह गया है,फिर भी राजनीति के दिग्गजों के सामने आम आदमी का यह प्रश्न सदैव अपना सर उठता रहेगा,क्योंकि देश में राजनीति जिस स्टार पर आ गयी है,उसमे आम आदमी शायद कहीं नहीं रह गया है ,इसे लोकतंत्र के गणित का निष्कर्ष कहें या कुछ और यह भी विमर्श का विषय है ।
Friday 29 June 2012
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