Tuesday 6 March 2018

सियासत में ईमानदारी की बात आजकल बेमानी है। सामाजिक व्यवहार में मूल्यों का हरास इस समस्या के मूल में है। विडंबना यह है कि जैसे को तैसा के फेर में दिशानायक भी जब प्रतिकूल आचरण करते हैं, तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या देश को अपने संकीर्ण स्वार्थों की बलिवेदी पर चढ़ाना न्यायसंगत है ?
- सुधाकर आशावादी

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